आईआईटी मद्रास डेटा साइंस में बीएस
15 साल की आईटी में नौकरी, लेकिन नहीं मिला ग्रोथ
आज से 15 साल पहले साल 2010 में बतौर फ्रेशर सॉफ्टवेयर इंजीनियर की सैलरी ₹3.5 लाख प्रति वर्ष होती थी। वहीं अब 15 साल बाद भी अधिकांश तौर पर फ्रेशर सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स को वहीं सैलरी मिल रही है। सभी आईटी कंपनी के मुनाफे में पिछले 1 दशक में भारी वृद्धि हुई है लेकिन उसके बावजूद फ्रेशर सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स की सैलरी आज भी उतनी ही है।
कंपनी | महीने की सैलरी | साल का पैकेज | हर घंटे की सैलरी |
टीसीएस (एसोसिएट सिस्टम इंजीनियर) | ₹ 28,072 | ₹ 3.36 lakh | ₹ 156 |
इनफ़ोसिस (सिस्टम इंजीनियर ट्रेनी) | ₹ 30,000 | ₹ 3.60 lakh | ₹ 167 |
कॉग्निजेंट (प्रोग्रामर एनालिस्ट ट्रेनी) | ₹ 33,499 | ₹ 4.01 lakh | ₹ 186 |
विप्रो (जूनियर मेंबर) | ₹ 25,000 | ₹ 3.00 lakh | ₹ 139 |
महीने में 180 घंटे के वर्किंग टाइम (9 घंटे/दिन, 20 दिन/माह) को मानते हुए, इन रोल में एक इंजीनियर प्रति घंटे 139 से 186 रूपये तक कमाते है। ये आंकड़े आश्चर्यजनक रूप से कम हैं जब आप सोचते है कि आज से 15 साल पहले भी बी. टेक इंजीनियर को यहीं सैलरी मिल रही थी। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस दौरान मुद्रास्फीति लगभग दोगुनी हो गई है, और इसी अवधि में बी.टेक डिग्री की करने की लागत भी 1-2 लाख से बढ़कर 20-25 लाख हो गई है। इससे यह समझ आता है कि बी. टेक की डिग्री करने के लिए छात्र अपनी शिक्षा में काफी समय, प्रयास और पैसा लगा रहे हैं, वो भी एक ऐसी सैलरी प्राप्त करने के लिए जो मौजूदा समय में आर्थिक वास्तविकताओं के साथ तालमेल नहीं रखता हैं।
इसके विपरीत, इन आईटी कंपनियों का मुनाफा तेजी से बढ़ा है। उदाहरण के लिए, टीसीएस जैसी कंपनियों ने अपने मुनाफे को 3,000-4,000 करोड़ से बढ़ाकर 34,000 करोड़ कर लिया है लेकिन आईटी कंपनियों ने फ्रेशर बी.टेक इंजीनियर्स की सैलरी में कोई भी वृद्धि नहीं की है।
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शहर में स्किल्ड वर्कर की कमाई
नीचे दी गई टेबल में प्लंबर, इलेक्ट्रीशियन, क्लीनर, बढ़ई, ब्यूटीशियन का काम करने वाले स्किल्ड वर्कर की एवरेज सैलरी से अवगत कराने का प्रयास किया गया है,
जानकारी
| यूनिट | सभी प्रोफेशंस
| >30 सेवाएँ /माह
| टॉप 20% ऑर्डर
| टॉप 10% ऑर्डर
| टॉप 5% ऑर्डर |
मासिक सक्रिय सेवा पेशेवरों का प्रतिशत | % | 100 | 63 | 20 | 10 | 5 |
ग्रॉस इनकम (औसत) | प्रति महीने | 50,392 | 62,541 | 77,211 | 86,546 | 92,619 |
शहरी कंपनी शुल्क % | % | 27.95 | 27.29 | 27.39 | 26.93 | 27.07 |
प्रोफेशनल द्वारा दिया गया इनडाइरेक्ट टैक्स
| प्रति महीने | 479 | 644 | 651 | 721 | 785 |
आने- जाने का खर्च | प्रति माह | 1,852 | 2,417 | 2,848 | 3,211 | 3,541 |
प्रोडक्ट और एडिशनल पर्सनल कॉस्ट
| प्रति माह | 7,490 | 8,451 | 11,267 | 12,489 | 13,504 |
नेट कमाई (औसत) | प्रति माह | 26,489 | 33,962 | 41,292 | 46,815 | 49,719 |
प्लेटफ़ॉर्म पर बिताए गए घंटे | प्रति माह घंटे | 87 | 109 | 134 | 148 | 160 |
कमाई प्रति घंटे | प्रति घंटे | 304 | 312 | 308 | 316 | 311 |
टेबल में दिए गए डाटा से यह ज्ञात होता है शहरों में स्किल्ड वर्कर की प्रति घंटे सैलरी औसतन 300 रूपये है जो बी.टेक इंजीनियर्स की सैलरी से लगभग दोगुना है।
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ब्लू कॉलर वर्कर्स बनाम बी.टेक ग्रेजुएट्स: सैलरी कंपैरिजन
पिछले 15-20 वर्षों में, टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो और कॉग्निजेंट जैसे टॉप आईटी कंपनी में बी.टेक ग्रेजुएट्स की स्टार्टिंग सैलरी में लगभग कोई बदलाव नहीं आया है। मुद्रास्फीति दोगुनी होने, शिक्षा की लागत 4-5 गुना बढ़ने और कॉर्पोरेट मुनाफे में 8-10 गुना वृद्धि के बावजूद, फ्रेशर बी.टेक इंजीनियर्स को अभी भी लगभग 3 से 3.5 लाख प्रति वर्ष ही मिलते हैं।
दूसरी ओर, ब्लू-कॉलर वर्कर- जैसे इलेक्ट्रीशियन, प्लंबर, ड्राइवर और अन्य प्रोफेशनल्स जो खासकर अर्बन कंपनी, स्विगी, ज़ोमैटो, उबर और ओला जैसे प्लेटफॉर्म पर काम करते है वो फ्रेशर बी.टेक ग्रेजुएट से प्रति महीने और प्रति घंटे ज्यादा ही कमा रहे हैं।
कंपनी/ केटेगरी
| प्रति घंटे कमाई | महीने की कमाई |
टीसीएस (एसोसिएट सिस्टम इंजीनियर) | 156 | 28,072 |
इनफ़ोसिस (सिस्टम इंजीनियर ट्रेनी) | 167 | 30,000 |
कॉग्निजेंट (प्रोग्रामर एनालिस्ट ट्रेनी) | 186 | 33,499 |
विप्रो (जूनियर मेंबर) | 139 | 25,000 |
अर्बन कंपनी (स्किल्ड प्रोफेशनल्स) | 311 | 49,719 |
स्विग्गी (डिलीवरी एग्जीक्यूटिव) | 315 | 25,234 |
ज़ोमैटो (डिलीवरी पार्टनर) | 350 | 28,000 |
उबर (ड्राइवर) | 331 | 29,732 |
ओला (ड्राइवर) | 367 | 33,000 |
अर्बन कंपनी का प्रोफेशनल प्रति घंटे 311रूपये कमाता है, जबकि टॉप आईटी कंपनी में काम करने वाला बी.टेक इंजीनियर्स प्रति घंटे 156 से 186 रूपये तक ही कमा पाते है। वहीं शहरों में काम करने वाले स्किल्ड वर्कर महीने में औसतन 160 घंटे काम करने के बाद 49, 719 रूपये प्रति महीने तक कमा लेते है। साल 2007 में, एक बी.टेक ग्रेजुएट अपनी पढ़ाई पर लगी हुई लागत को 2 से 3 सालों में वसूल कर लेता था लेकिन अब उन्हें अपने डिग्री पर हुए खर्च को वसूलने में 6 से 8 साल का समय लगता है।
यह लेख न केवल सैलरी की तुलना नहीं कर रही है बल्कि भारत में चरमराते रोजगार ढांचे का प्रतिबिंब भी दर्शा रहा है। कंपनियां नौकरियों की सख्त जरूरत का फायदा उठा रही हैं, जबकि गिग इकॉनमी में स्किल वर्कर अपने शर्तों पर काम करके वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त कर रहे हैं। ऐसे में अगर आने वालों वर्षों में भी बी.टेक फ्रेशर ग्रेजुएट की सैलरी मुद्रास्फीति और शिक्षा की लागत के अनुरूप संशोधित नहीं होगी तो इंजीनियर बनने का सपना जल्द ही अपनी महत्वपूर्णता खो देगा।
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